...

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दर्पण
मुझे कोई चाहत न थीं की तेरे हिदायत पे चालू फिर भी मैंने चला क्योंकि मुझे तेरी मुस्कान पे भरोसे थे. लेकिन मैं ये जान न सका तू कांच की तरह जिसके सामने जाएगी उसी की आपने होने का ताबीज़ देती फिरोगी.
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