...

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और फिर एक दिन
और फिर एक दिन,
मैने सबकुछ जाने दिया
न रोका किसी को,
न किसी से कोई वादा किया।
न किसी से कोई शिकायत की,
न किसी का रूठना मनाना किया
न किसी की देहलीज पर रुके कदम,
न किसी के दामन को थाम लिया
न किसी के पन्नों की कहानी बने,
न किसी को लफ़्ज़ों की जबानी बनने दिया
न किसी की खुशी मे खुश हुए हम,
न किसी के गम मे खुद को उदास किया
और फिर एक दिन, मेने सबकुछ जाने दिया
© jhimi