...

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बूंद ही समंदर है
सागर भी उमड़ कर शांत होते हैं
बादल भी घुमड़ कर शांत होते हैं
नदियां अपने किनारे तोड़ देती हैं
तालाब भी अक्सर सूख जाते हैं
झील भी बर्फ सी पत्थर होतीं हैं
आस्मां भी उतरता जमीं पर है
मोहब्बत कभी कम हो जाती है
अहंकार झुकने पर ही मिटता है
तब बूंद ही समंदर हो जाती है
समा जाता है समंदर इक बूंद में

© mast.fakir chal akela