एक स्त्री की मन की व्यथा
मेरे कोमल ह्रदय पे कटु वाणी की तलवार का वार करोगे
मेरे साफ एवम शुद्ध मन पे आघात करोगे
तो मैं एक निश्चित सीमा तह ही सह पाउंगी
अपने मस्तिष्क में चल रहे नकारात्मक ऊर्जा
को कब तक मैं अपने अंतर्मन में रख पाउंगी
मैं भी इंसान स्वरुप हूं आखिर कब तक
अपने कोमल ह्रदय को कोमल रख...
मेरे साफ एवम शुद्ध मन पे आघात करोगे
तो मैं एक निश्चित सीमा तह ही सह पाउंगी
अपने मस्तिष्क में चल रहे नकारात्मक ऊर्जा
को कब तक मैं अपने अंतर्मन में रख पाउंगी
मैं भी इंसान स्वरुप हूं आखिर कब तक
अपने कोमल ह्रदय को कोमल रख...