...

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एक सफर अंतहीन डगर पर
एक सफर अंतहीन डगर पर,
चलता हूँ पल पल तुम्हारे साथ,
क्योंकि तुमने ही प्रियतम,
थामा है ताउम्र के लिए मेरा हाथ...!
भर कर तुमने सिंदूर अपनी मांग पर,
कर दिया मुझे अपना हकदार,
पहन कर मंगलसूत्र तुम,
कर देती हो मुझे स्वयम समर्पित...!
और जब थाम लेती हो मुझे अपनी बाहों में,
तो हो जाता हूँ मै तुम्हारा तलबगार...!
© Rohit Sharma "उन्मुक्त सार"