...

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ओ मेरी माँ
गिरता था जब भी मैं, तू ही मुझे उठाती थी,
आंखें नम देख मेरी मां मुझे तू चुप कराती थी,
फिर तू ही उंगली पकड़ मेरी मुझे चलना सिखाती थी,
मेरी ये छोटी सी खुशी देख मां तू ही खुश हो जाती थी।

भूख जब कभी लगती थी तू अपने हाथों से खिलाती थी,
मुझे खाना जरूरी है कहकर खुद भूखी रह जाती थी,
मुझे अच्छा खिलाने को मां तू रूखी सूखी खाती थी,
भूखा अगर रह जाता था मां तू भी खाना न खाती थी।

रात को जब मैं सोना पाता तू लोरी गाकर सुनाती थी,
सीने से लगाकर अपने मां थपकियां देकर सुलाती थी,
डर लगता था जब कभी तो तू अपने आंचल में छुपाती थी,
जब तक न सो जाता था मैं मां नींद तुझे ना आती थी।

बीमार मैं जब पड़ जाता था मां तू भी तड़प जाती थी,
मेरी कंपन दूर करने को तू खुद को जलाती थी,
मेरी देखभाल करने में मां मुझसे ज्यादा दुख तू सह जाती थी,
दवा का तो पता नहीं पर मां तेरी दुआ जरूर काम आती थी।

जब कभी कोई मुसीबत आती तू आगे डट जाती थी,
मुझे फटकारने वालों की तू मां डांट खुद सुन जाती थी,
बुरा भला जब कोई कहता तू उसे कितना सुनाती थी,
मेरे खातिर ओ मेरी मां तू दुनिया से लड़ जाती थी।