...

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होली : एक कहानी~
वो गाल गुलाल से सने थे,
उम्र में उनकी नादानी थी ,
उनकी हर अंदाज में शैतानी थी ।

अरे हाथ पकड़ , अरे इधर से पकड़ ,
मानो किसी जंग की चेतावनी थी ।
अरे अरे , पकड़ ही लिया था !
वो उसके हाथ से निकल जाने पर
चेहरे पर उदासी थी ,

और कभी खुद पकड़े गए तो ••••
बस इसी एक बात से परेशानी थी !

खुद का चेहरा तो पहचान में न आ रहा था ,
पर फिर भी दूसरों की हँसी उड़ानी थी !

उनके साथ बीते हर लम्हे में रूमानी थी ,
' बुरा न मानो होली है ' , ये हमे रटी जुबानी थी !

देखा मैंने उनके रंग तरंग को भीनी मुस्कुराहट के साथ ,
ऐसी कभी मेरी भी एक कहानी थी ,
एक बार उसे सच कर दिखानी थी ,
मुझे भी एक बार ऐसी होली फिर से मनानी थी !!


" लड्डू बचाए या खुद को •••• इसकी चिंता एक बार फिर करनी है , मुझे ऐसी होली फिर मनानी है !"

सारी तरकीब अपनानी हैं ••• सभी को रंग लगाना है •••• यूंही उन्हे रंग , हमे छुप जाना है ! "

© सदेव