...

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मेघों के पार
कैसे सीखा तुमने
मुझे भूलना
तुम्हारे लिए क्या
इतना आसान था
नितप्रति तुम्हारे विचारो
में ही घुला हूँ
मुझे अब तक भी
यही भान था
प्रयास मैंने भी
कभी किये थे
लेकिन मन में
भीषण घमासान था
गहन प्रतिपक्षपाती
भी था मस्तिष्क
और हृदय भी
स्वयं ही अनुसंधान था
कभी ठगी भी थी
मोहिंनियों ने त्वचा
यद्यपि तब मैं
अबोध जवान था
किंतु तुम ही
रक्त प्रवाह रही हो
ये तब भी
धमनियों को ज्ञान था
हाँ उमर अनिच्छित
पड़ावों से गुजरी है
पर वास्तव में मैं
अत्यन्त भाग्यवान था
क्षीण दृष्टि,झरे केश ,
अब भले पहचान मेरी
कभी तुम्हारे चेहरे की
हलकी मुस्कान था
भूल भी जाता लेकिन,
दृश्य तुम सपनो को मेरे
खुली आँखों को भी
यही देव वरदान था
घर नहीं होने दिया मुझे
तुमने कभी अपना
किवाड़ खोलती तो
मैं तुम्हारा दालान था
ढंकी किस से हो कि
अनजान मुझसे मेरी धरा
झांकती यदि मेघों के पार
मैं ही तो आसमान था