...

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अनकहा 🖤🍂
केसे बताये पास रहते हैं लेकिन फिर भी
दुरिया कितनी हे..,
समजते हे लेकिन समजा नहि शकते
मजबूरियां कितनी हे।

बोले बगेर भी कहते वो खामोशियों में भी ख़ूबसूरतियाँ कितनी हे,
बिन कुछ कहे बिन कुछ छुपाये वो बातों में इमानदारियाँ कितनी हे।

बिन मिले बिन गले लगाए रिश्ता निभा रहे
वो रब की शुक्रगुज़ारियां कितनी हे,
लड़े झगडे अपनी जगह पर तुझसे
रूहदारियाँ कितनी हे।

हसे रोये साथ वो ठहाको वाली शाम और दोपहरियाँ कितनी हे,
रिश्ता जैसे आसमा या ज़मीन जैसा फिर भी गहेरीयाँ कितनी हे।
✍️🖤✨ Pragati

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