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मेरे उलझे सवाल....
पूछती हूं खुद से खुद से उलझती भी हूं
खुद से मिले जवाबो से तर्क करती भी हूं
पर समुचित जवाब मिला नहीं
मेरे विचलित मन के कटीले सवालों के
बेचैन भी रहती हू खुद में
ठहरी रहती हैं आंखों में खामोशी
और लबों पर हंसी भी रखती हूं
बहुत सवाल है मन में
जिन्हें ना किसी से कह पाती हूं
ना जुबां पर ला पाती हूं
बस....खुद से ही उलझती रहती हूं
© All Rights Reserved
खुद से मिले जवाबो से तर्क करती भी हूं
पर समुचित जवाब मिला नहीं
मेरे विचलित मन के कटीले सवालों के
बेचैन भी रहती हू खुद में
ठहरी रहती हैं आंखों में खामोशी
और लबों पर हंसी भी रखती हूं
बहुत सवाल है मन में
जिन्हें ना किसी से कह पाती हूं
ना जुबां पर ला पाती हूं
बस....खुद से ही उलझती रहती हूं
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