...

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मैं कैसे अपना जिस्म, हवाले तेरे कर दूं...?
“उन लड़कियों की ओर से एक आवाज, जिसे पता है चरित्र होता क्या है।”

मैं कैसे अपना जिस्म, हवाले तेरे कर दूं...?

ये जिस्म नहीं चरित्र है मेरा,
कैसे ये चरित्र, हवाले तेरे कर दूं...?

तू प्यार नहीं शिकार है करता,
कैसे किसी शिकारी को, मैं अपना कह दूं...?

तू ही बता...
मैं कैसे अपना जिस्म, हवाले तेरे कर दूं...?

तू कहता है...
ये मेरा चेहरा तुझे भाता है,
देख मेरा ये चेहरा, तू प्यार जताता है...

दिल की बात समझता नहीं, ये कैसा मेरा यार है तू...?
कैसे तेरे इस प्यार को, मैं प्यार कह दूं...?

मैं कैसे अपना जिस्म, हवाले तेरे कर दूं...?

ये जिस्म नहीं चरित्र है मेरा,
कैसे ये चरित्र, हवाले तेरे कर दूं...?

खुदा आकार बताए मुझे,
मैं कैसे अपना जिस्म, हवाले तेरे कर दूं...?
मैं कैसे अपना जिस्म, हवाले तेरे कर दूं...?

© Rahul Raghav

#raghavkipoetry #character