श्रमिक दशा-संवेदनहीन सत्ता
देख दशा देश की ऐसी
मन विद्रोही बन जाता है
जिसके खून ने देश को सींचा
वह दर दर की ठोकर खाता है।
शासन है या शोषण समझ नही मै पाता हूँ
दो वक्त की रोटी भी अंधा गूंगा शासन से न दिया जाता है
धिक्कार योग्य है ऐसी सत्ता
जो केवल गरीबो के खून ही चूस सकती है।
जब असहायपन लाँघता सीमा
सहन नही कर पाता है
जिन शहरों को सजाया सवारा मजदूरों ने
उसी में रौंद दिया जाता है।
शहरों...
मन विद्रोही बन जाता है
जिसके खून ने देश को सींचा
वह दर दर की ठोकर खाता है।
शासन है या शोषण समझ नही मै पाता हूँ
दो वक्त की रोटी भी अंधा गूंगा शासन से न दिया जाता है
धिक्कार योग्य है ऐसी सत्ता
जो केवल गरीबो के खून ही चूस सकती है।
जब असहायपन लाँघता सीमा
सहन नही कर पाता है
जिन शहरों को सजाया सवारा मजदूरों ने
उसी में रौंद दिया जाता है।
शहरों...