...

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रति!
प्रेम में ही राधा–मोहन,मीरा–श्याम,सिया–राम निखर गए,
फिर हो कैसे यकीन तुम पर कि तुम प्रेम में ही बिखर गए,
गर सच में हो बिखरे तो सच मानो, प्रेम नहीं वो सौदा था,
जिन चिट्ठियों के सहारे इतनी दूर तलक तुम निकल आए,
वो बस झूठे वादों और दलीलों का प्यारा एक मसौदा था।

प्रेम ही तो रति है, रति ही संयोग है,
मैंने माना ये भी, कि रति ही वियोग है,
अगर रज में रति ने रति को ढूंढ लिया,
फिर मानो ईश ने तुमको सब कुछ दिया,
कभी जो मिला हो तुमको ये दिव्य प्रसाद,
समझो इस फल के पीछे तुम्हारा कोई तप और योग है,
फिर क्या मलाल की रति में ही संयोग है या वियोग है।।
—Hydra.
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