चलों आज कूछ नया शीखते हैं |
उन बेहती हुयी नदिओं से कुछ शिखा हैं मैंने,
की कैसे वो विशाल काय पर्वत को चीरती हुई,
सारी मुस्किलिओ को पार करती हुई,
लोगों के लिए आती हैं |
उस आकाश से मैंने ये शिखा की,
कैसे वो हर सुबह शाम,
एक नयी बादलों और रंगों की रंगोली को अपनाकर, ...
की कैसे वो विशाल काय पर्वत को चीरती हुई,
सारी मुस्किलिओ को पार करती हुई,
लोगों के लिए आती हैं |
उस आकाश से मैंने ये शिखा की,
कैसे वो हर सुबह शाम,
एक नयी बादलों और रंगों की रंगोली को अपनाकर, ...