"कुछ यूँ ही ,जुड़े, रहिये अपनों से"।।
बेवजह तिल का ताड़ कर,
हम अपनों से लड़ बैठे।।
बेगैरत हुए महोल्ल्ले में, और अपनों में,
फिर, भी अहम और जिद्द की डोर ना छोड़े।।
समझ लेते ,अपनों को अपनेपन से,
शायद सम्भल जाते समय से।।
ना घर के रहे, ना घाट के,
बस जुनून में लड़ बैठे ।
और अपना ही बिगाड़ लिया, अपने से।।
रिश्तों में , शर्तो और किस्तों को दूर ही रखिये।
अफवाहों, और ...
हम अपनों से लड़ बैठे।।
बेगैरत हुए महोल्ल्ले में, और अपनों में,
फिर, भी अहम और जिद्द की डोर ना छोड़े।।
समझ लेते ,अपनों को अपनेपन से,
शायद सम्भल जाते समय से।।
ना घर के रहे, ना घाट के,
बस जुनून में लड़ बैठे ।
और अपना ही बिगाड़ लिया, अपने से।।
रिश्तों में , शर्तो और किस्तों को दूर ही रखिये।
अफवाहों, और ...