...

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आंसू
आंखों से गिरी बूंदें
जब बेह जाती है नीचे
छोर जाती है चेहरे पे
मुस्कुराहट की तस्वीरें

फिर सागर बन अपने गर्जन से
छू जाती है कुछ आवाजों को
ले जाती है कुछ खामोशियां
जो बेजुबान को जुबानी दे जाए

ऐसा क्या होता है?
जो अनंत तक वो फैल जाती है
अंदर छुपाती है
खूबसूरत सी, खोयी सी अपनी दास्तान

उसी से भीगी मिट्टी
सुख जाती है
कभी न कभी जरूर
भीगे नैनों की ही तरह

ठंडी हवा वहां बेहती है जो
लाती है लहरे वो तेज़
अनसुने अनदेखी ख्वाबों का लहर
जो फिर उसी में मिल जाती है।।
© Sabita