...

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बुलाते पहाड़
जब जब होती है बारिश,
पहाड़ निहारते है, उन घरों को,
जहाँ अब कोई नहीं रहता.
टप टप खपरैल से टपकती,
बारिश की उदास बूंदे,
तलाशती है उन हाथों को,
जो खिड़कियों से कभी,
बाहर निकलते थे थामने
बारिश की गिरती बूंदो को.
फिर कोहरा ढक लेता था
पहाड़ के इन गाँव घरों को,
सुनाने बारिश का टपक संगीत
फिर ऐसा आभास होता था,
गोया पहाड़ गा रहे हों, बारिश का गाना.
पलायित लोगो को बुलाते है
अभी भी पहाड़, बारिश मे.
जैसे कह रहे हों,
"आओ फिर बारिश आई,
सुनाऊंगा तुम्हे, वहीं बारिश का गाना ".