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परम धूर्त घोशी जी - एक काल्पनिक व्यंग्य 🤣🤣🤣
परम धूर्त घोशी जी - एक काल्पनिक व्यंग्य 🤣🤣🤣

सुन्दर सुन्दर सभ्य सुसंस्कृत प्यारे प्यारे घोशी जी !
इन शब्दों पर ध्यान न देना होगे वरना दोषी जी !
बने जगेरी (गुड़) घूमा करते जय जयकार भी होती जी !
दूर के ढ़ोल सुहाने जैसे इनकी हरकत वैसी जी !
सुन्दर सुन्दर सभ्य सुसंस्कृत प्यारे प्यारे घोशी जी !
मुख से फेयर & लवली टपके भीतर बदबू कांदे सी !
भेद भाव और राजनीती में शकुनी के हैं भांजे जी !
राम लाल उसके बन जाते तलवे जो भी चाटे जी !
कभी कभी कुकुर बन जाते मौका पाकर काटे जी !
पदवी की गरिमा को भूले दुःख में काम ना आते जी !
आग इधर की तेज जलाकर लेकर उधर लगाते जी !
सुन्दर सुन्दर सभ्य सुसंस्कृत प्यारे प्यारे घोशी जी !
अपना लाभ है इनकी गीता लाख जहर हो कोई पीता !
किंतु इक दिन इनके ऊपर निज कर्मों का पड़ गया छींटा !
पकडे मिले अकेले एक दिन फिर कुछने कायदे से पीटा !
फोन पे गारी इक्कीस बाँटी हो गए बहिरे घोशी जी !
सुन्दर सुन्दर सभ्य सुसंस्कृत प्यारे प्यारे घोशी जी !

© VIKSMARTY _VIKAS✍🏻✍🏻✍🏻

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