...

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रात हमसफर

तन्हाई में आ कर
दामन थम जाती है।
शैशय को भी खबर नही
गुफ्तगू कर जाती है।।

जब महफ़िलो की आवो में
मेरे अश्क तस्वीर उकेरती है,
तू न हो कर भी
साथ एहसास कराती है,

तो ये रात हमसफर मेरी
थपकियाँ दे कर सुलाती है