इश्क़ का रँग
क्या याद है वो रंग इश्क़ का
चेहरे पर क्या खूब चढ़ा था !
सुबह लगती थी गुलाबी
सुनहरी धूप ने गालों को मला था !
सफ़ेद चादर लिए आती सर्द हवा
गर्मी से नीला अंबर सजा था !
बूंद बूंद ने तनमन को पिघलाया
मन की हरियाली को चूमा था !
शाम उभरती चाय के संग में
आँखों में सुर्ख रँग लगा था !
रात काली तन्हा न कटती
'प्रीत' का चाँद दूर से तकता था
© speechless words
चेहरे पर क्या खूब चढ़ा था !
सुबह लगती थी गुलाबी
सुनहरी धूप ने गालों को मला था !
सफ़ेद चादर लिए आती सर्द हवा
गर्मी से नीला अंबर सजा था !
बूंद बूंद ने तनमन को पिघलाया
मन की हरियाली को चूमा था !
शाम उभरती चाय के संग में
आँखों में सुर्ख रँग लगा था !
रात काली तन्हा न कटती
'प्रीत' का चाँद दूर से तकता था
© speechless words