...

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इश्क़ का रँग
क्या याद है वो रंग इश्क़ का
चेहरे पर क्या खूब चढ़ा था !

सुबह लगती थी गुलाबी
सुनहरी धूप ने गालों को मला था !

सफ़ेद चादर लिए आती सर्द हवा
गर्मी से नीला अंबर सजा था !

बूंद बूंद ने तनमन को पिघलाया
मन की हरियाली को चूमा था !

शाम उभरती चाय के संग में
आँखों में सुर्ख रँग लगा था !

रात काली तन्हा न कटती
'प्रीत' का चाँद दूर से तकता था

© speechless words