जब से चला,चलता ही रहा
जब से चला,चलता ही रहा
आँखों ने,राह का पत्थर नहीं देखा।
चलता रहा हुआ लथपथ,मगर
किसी साये,थककर नहीं बैठा।
जो कह गया था सब गम ले लेंगे
चढ़ गया छत,वो मुड़कर नहीं देखा
कैसे बदलता है,जमाना मिजाज
उस कुर्सी पर न बैठा,वो नहीं देखा।
ढ़लते रहे हम पायदान,वो बोझ है
सिर का,झटक कर नहीं फेका।
© Nits
आँखों ने,राह का पत्थर नहीं देखा।
चलता रहा हुआ लथपथ,मगर
किसी साये,थककर नहीं बैठा।
जो कह गया था सब गम ले लेंगे
चढ़ गया छत,वो मुड़कर नहीं देखा
कैसे बदलता है,जमाना मिजाज
उस कुर्सी पर न बैठा,वो नहीं देखा।
ढ़लते रहे हम पायदान,वो बोझ है
सिर का,झटक कर नहीं फेका।
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