...

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सुबह का भूला...
सुबह का भूला
शाम को घर लौटता है
पंछी हर शाम लौटते हैं
अपने घोसलों को
सागर की लहरें भी
लौट जाती हैं सागर में
बस एक नदी है
जो सागर में मिलकर
लौट नहीं पाती,
तुम
सुबह का भूला बनना
पंख वाले पंछी बनना
सागर की लहरें बनना
पर नदी न बनना
जो मुझ तक फिर से लौट न सको

संजय नायक"शिल्प"
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