...

12 views

कोई और
ये बिखरा ज़िस्म तो मेरा है कब्र तक ले जाएगा कोई और ।
कल रवानगी होगी मेरी अश्क-ए-अब्र बहाएगा कोई और ।।

इन खुश्क आँखों के चश्म-ए-दरिया मे लरजता अक्स मेरा ।
यूँ शाम ढ़ले क्या पता इन आँखों मे लौट आएगा कोई और ।।

वो पन्नों पर बने कागज़ के फूल महकते न थे मेरे बागबाँ मे ।
महकती कलियों की कहानी मेरे बाद सुनाएगा कोई और ।।

यूँ तो चुप रहने की ख्वाहिश रखता है ये खुला सा आसमां ।
पर इसे अब रो-रोकर आँसू बहाना सिखाएगा कोई और ।।

कल खौंफ-ए-ख़िजाँ से कितने दरख्त सूखकर दम तोड़ गए ।
आज शहर-ए-ख़मोशाँ मे आदाब करना बताएगा कोई और ।।

एक रिदा के लिए कल हैसियत मे तरसता रहा तू 'अल्फाज' ।
कि आज कफ़न के साथ तुझे ज़नाज़े पर लिटाएगा कोई और ।।