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क्या यही बस तेरी यारी है...
वक्त के साथ बदलना लाजमी है
पर रिस्तों को ही बदल देना
ये कहां की समझदारी है
माना बीच मझदार में फंसा है
पर किसी को अच्छा
तो बिन समझे किसी को बुरा
ये तो शराशर गैर जिम्मेदारी है
यूं बन ठनकर
सब रिश्ते नातों को पीछे छोड़कर
कहां जाने की तैयारी है
बुढे़ माँ बाप को आशा देकर
किसी के संग
जीने मरने की कसमें खाकर
बिच राह में छोड़ जाना
ये कहां की खुद्दारी है
क्या यही बस तेरी यारी है?
© Sankranti chauhan
पर रिस्तों को ही बदल देना
ये कहां की समझदारी है
माना बीच मझदार में फंसा है
पर किसी को अच्छा
तो बिन समझे किसी को बुरा
ये तो शराशर गैर जिम्मेदारी है
यूं बन ठनकर
सब रिश्ते नातों को पीछे छोड़कर
कहां जाने की तैयारी है
बुढे़ माँ बाप को आशा देकर
किसी के संग
जीने मरने की कसमें खाकर
बिच राह में छोड़ जाना
ये कहां की खुद्दारी है
क्या यही बस तेरी यारी है?
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