...

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सिर्फ तेरी ख़ातिर....
देख तेरी ख़ातिर फिर से
हम ताकत जुटाते हैं

थके कदमों से तेरे दर तक
हम चलकर आते हैं

उम्मीद भरी ये निगाहें टिकी
रहती हैं हर वक्त तुझपर

कभी तो होगा तेरा करम भी
इस मुफ़लिस पर

ना होगी जो रहमत तो गम नहीं
मगर ये इबादत तो रोज होती रहेगी !!