...

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राज़ की बात
वो अपना चीकू , जिसे तंबाकू समझ कर खाया करते थे
वो अमरूद के पत्ते को, पान बनाकर चबाया करते थे
वो पतली सी लकड़ी में होल कर, सिगरेट पिया करते थे
हम अपना बचपन , कुछ ऐसे ही जिया करते थे

हो दोपहर का वक्त, घर से निकल जाया करते थे
छांगुर के दुकान का, समोसे मटर खाया करते थे
ना ख़बर हो किसी को, काम को अंजाम बख़ूबी दिया करते थे
हम अपना बचपन, कुछ ऐसे ही जिया करते थे

बात छोटी हो या बड़ी, सबसे झगड़ जाया करते थे
कोई एक मारे, तो बदले में हम चार लगाया करते थे
ना जाने कौन-कौन से नए, कारनामे किया करते थे
हम अपना बचपन, कुछ ऐसे ही जिया करते थे
© Monali Sharma