मैं तुम्हें फिर मिलूंगी
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी...कहाँ, कब, किस तरह से मुझे नहीं पता
हाँ,शायद! कभी हकीकत और फसाने की सरहद में मिलूंगी तुम्हें
अचानक तुम्हारे पांव थम जाए जहाँ, उस सफर की जद्दोजहद में मिलूंगी तुम्हें !!_
हो सकता है कभी महक जाऊं तुम्हारे दिल के आंगन में जज़्बातों के फूलों से पिरोया किसी खुशबूदार ग़ज़ल का अशआर बनकर_
या हो सकता है कभी छप जाऊं तुम्हारे ज़ेहन में किसी कल्पित कहानी का तुम्हारा सबसे पसंदीदा किरदार बनकर_!!
युद्धभूमि में जब योद्धा बन उतरो, तुम्हारे ललाट पर उम्मीद की तिलक बन मिलूंगी_
गर लौट आओ तुम थक-हार कर भी तुम्हारे कंधे पर थपकी और जीत की ललक बन मिलूंगी_!!
इक नयी...
हाँ,शायद! कभी हकीकत और फसाने की सरहद में मिलूंगी तुम्हें
अचानक तुम्हारे पांव थम जाए जहाँ, उस सफर की जद्दोजहद में मिलूंगी तुम्हें !!_
हो सकता है कभी महक जाऊं तुम्हारे दिल के आंगन में जज़्बातों के फूलों से पिरोया किसी खुशबूदार ग़ज़ल का अशआर बनकर_
या हो सकता है कभी छप जाऊं तुम्हारे ज़ेहन में किसी कल्पित कहानी का तुम्हारा सबसे पसंदीदा किरदार बनकर_!!
युद्धभूमि में जब योद्धा बन उतरो, तुम्हारे ललाट पर उम्मीद की तिलक बन मिलूंगी_
गर लौट आओ तुम थक-हार कर भी तुम्हारे कंधे पर थपकी और जीत की ललक बन मिलूंगी_!!
इक नयी...