...

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जीवन की मृगतृष्णा
जीवन की मृगतृष्णा को...जो जैसे जीता है जी लेने दो
दो चार मधु के और प्याले...पी लेने दो...पी लेने दो
जीवन भी तो मधुशाला है,
और यहां...स्वयं ही स्वयं को पिलाने वाला है
कितने रंग बिरंगी लोग हैं इसमें आते
कुछ तो मद बन छा जाते
कुछ गिरते कुछ बिछड़े जाते
जीवन है बड़ा सतरंगी... रंगों के अधीन कभी तो होने दो
जीवन की मृगतृष्णा को...जो जैसे जीता है जी लेने दो
दो चार मधु के और प्याले...पी लेने दो...पी लेने दो…
मद के अधीन हो कभी इधर गिरते कभी उधर गिरते
मद से जब होश आता तब पश्चाताप करते
उस मधुशाला से शायद बाहर भी निकल आए
पर जीवन रूपी मधुशाला से हम जीवन भर नहीं निकलते
खुशियां पाने की जल्दी है जाओ खुशियां जोड़ लेने दो
जीवन की मृगतृष्णा को...जो जैसे जीता है जी लेने दो
दो चार मधु के और प्याले...पी लेने दो...पी लेने दो



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