...

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सिर पर हाथ
सोने सी काया हो,
गगनचुम्भी माया हो,
तो क्या...,
प्रभूजी..आपके बिना सब बेकार है,
कि.. सोने सी काया कब तक..?
और..
गगनचुम्भी माया में, अहंकार कितना..?
हुस्न और नज़ाकत का खेल, आपसे छुपा नहीं, प्रभूजी।
नाश निश्चित है, अंहकारी का।
राग-रंग का नाच हो,
या
कदम-कदम पर लोगों की जांच हो..
आसां नहीं.., फिर भी..,प्रभूजी, आप बिन
जीवन को सहजता से जी लेना
कि
चाहे उमर भर रिझाओं.., उमर भर लोगों को जच्चों...
बस एक दिन न जचे तो क्या जचे...
आप जैसा प्यार करना, जमाने के बस की बात नहीं, प्रभुजी।
फ़िर चाहे कितना ही जमाओ, कितना ही कमाओ।
प्रभूजी विनती करूँ तो बस इतनी...
साँसों की जब तक माला हो..
रोम-रोम नाम जप करने वाला हो..
मन में भी.. कण- कण में भी शिवाला हो..
अन्यन्य भक्ति का अमृत प्याला हो..
सद गुरु का साथ इतना प्यार हो..
जो माथ हमारा इनके चरणों में..
तो फिर हाथ सिर पर तुम्हारा हो।
तो फिर हाथ सिर पर तुम्हारा हो।
आभार प्रभुजी।
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© nikita sain