...

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सिर पर हाथ
सोने सी काया हो,
गगनचुम्भी माया हो,
तो क्या...,
प्रभूजी..आपके बिना सब बेकार है,
कि.. सोने सी काया कब तक..?
और..
गगनचुम्भी माया में, अहंकार कितना..?
हुस्न और नज़ाकत का खेल, आपसे छुपा नहीं, प्रभूजी।
नाश निश्चित है, अंहकारी का।
राग-रंग का नाच हो,
या
कदम-कदम पर लोगों की जांच हो..
आसां नहीं.., फिर भी..,प्रभूजी, आप बिन
जीवन को सहजता से जी लेना
कि
चाहे उमर...