...

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आख़री सफ़र
सब जा रहे थे किस ओर
मैं भी उनके पिछे चल पड़ा
यही सोचके के सभीं
सही ही होंगे

इतने सारे ना ही
गलत हो सकते हैं
ना ही किसी मख़्सत
के सिवा चलते होंगे
खैर सच तो इतना
ही है की मैं चल पड़ा

बहोत से रास्तें
कुछ छोटे कुछ बडे
कई टेढ़ी बहोत सी सरल
जुड़ती रही
मुड़ती रही
बिख़रती रही

किसी एक राह
पकड़कर मैने अपना
सफ़र जारी रख़ा
राह के चलते
कही न जाने वाली राह
अचानक ख़तम हो गयी

मैने मुड़कर अपने पिछे
जो देख़ा तो वहाँ पे
कोई भी था नहीं
हड़बड़ा कर मैं
अपनी सोंच में
डूबा ही था के
मौत सामने आ के
ख़डी थी

आचरज़ में डूबा मुझ़े
देख़े हसकर बोली
ऐसा ही होता हैं
हर एक के साथ
किसीको मेरा इंतज़ार
नही होता

और मैं एकमात्र देवता हूँ
जो बिन बुलायें
मेरा भक्त ना होते भी
दर्शन भी देता हूँ
और सभी ज़ीवोंको
मुक्ती भी

मैंने मौत के पीछे
चलना शुरू कर दिया

मेरा आख़री सफ़र

© Subodh Digambar Joshi