...

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देखा है तुमने....
कितनी ख्वाहिश़ें बहती हैं मुझमें ,कभी उतरकर देखा है तुमने
यूं तो मुस्कुरा देता हूं अक्सर ,कभी ग़म का समुंदर देखा है तुमने
कितनी यादें हैं तुम्हारी हमारी,कभी पीछे मुड़कर देखा है तुमने
हर तरफ़ा तो मंज़र तुम्हारा था मुझमें,कभी खुद से निकलकर देखा है तुमने
बैचेनियों का सबब़ होता है कैसा,कभी त़न्हाई में पड़कर देखा है तुमने
माना गुज़रती रहती है जिंदगी,कभी एक पल ठहरकर देखा है तुमने
माना कि वो पल सब ज़ाया थे अपने,कभी लम्ह़ों में सिमटकर देखा है तुमने
कितना संग निभाता किस हद तक मैं जाता,कभी हाथ पकड़कर देखा है तुमने
आज भी हो तुम पन्नों में मेरे ,कभी इनको पढ़कर देखा है तुमने..