पता नहीं..
पता नहीं मुझे कि,
मैंने कोई गुनाह किया है,,
शुष्क होठों पर,
घुली मुस्कान की कोई परवाह किया है।।
मालूम नहीं तुम इतना बेरुखी सी,
क्यों नजर आ रही हो!,
अपनी गलतफहमी पर पर्दा गिरा रही हो।।
आपकी नजरों का क्या गजब दस्तूर है,
अरमानों को कुतर के चले...
मैंने कोई गुनाह किया है,,
शुष्क होठों पर,
घुली मुस्कान की कोई परवाह किया है।।
मालूम नहीं तुम इतना बेरुखी सी,
क्यों नजर आ रही हो!,
अपनी गलतफहमी पर पर्दा गिरा रही हो।।
आपकी नजरों का क्या गजब दस्तूर है,
अरमानों को कुतर के चले...