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कभी कभी कहीं रहना इतना मुस्किल होता है....
कभी कभी कहीं रहना
इतना मुस्किल होता है
ना चाहते हुए भी
सबकुछ सहना पड़ता है,

इसकी उसकी सुन-सुन
दिल तिल तिल मरता है
फिर भी उसी चार दिवारी में
घुट घुट के जीना पड़ता है,

कहने को सब अपने होते हैं
फिर भी हर पल बेगाना लगता है
एक खुशी के पल ढूंढने में
कई जमाना लगता है,

कल एक नई सुबह होगी
दिल को हर रोज समझाना पड़ता है
आज बीत गया कल एक नई किरन खिलेगी
दिल को यह यकीन दिलाना पड़ता है,

हर रोज चुप्पी साध
अंधा - बहरा बन बिताना पड़ता है
कुछ तो अच्छा हो
इसके लिए खुद को ही सताना पड़ता है,

दुख - दर्द तब और बड़ जाता है
जब यह एहसास होता है कि
जहां मेरा बसेरा है
वो मेरा ही घर आशियाना होता है।

© Sankranti chauhan