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ख्वाब बस ख्वाब होता है, सच्चाई नहीं!
#ख्वाबोंकीदुनिया
पहाड़ों की घाटी से
पैदल नीचे उतरकर
यूं ही बैठ जाता हूं,
कभी कभी बेसबब
हरी भरी दूब से भरे
उस घास के मैदान में,
दोनों हाथ पैर फैलाए,
दोनों हाथ ज़मीन पर
लापरवाही से जमाए,
आसमां की ओर मुंह
किए मगर आंखें मूंदे,
जानता हूं मैं बखूबी,
ऐसा चैन ओ सुकून,
दफ्तरों में, फाइलों में
कभी मयस्सर नहीं,
ऐसी मरमरी धूप,
ऐसी ज़िंदा बयार,
कहां नसीब होती हैं
बंद खिड़कियों और
दरवाजों के भीतर,
और फिर अचानक
चल देता हूं उठकर,
और फिर जाते हैं टूट—
मेरी नींद और ख्वाब,
अलार्म की कर्कश
आवाज़ बता देती है—
सुकूनो चैन बस
ख्वाबों की बात है!
—Vijay Kumar
© Truly Chambyal
पहाड़ों की घाटी से
पैदल नीचे उतरकर
यूं ही बैठ जाता हूं,
कभी कभी बेसबब
हरी भरी दूब से भरे
उस घास के मैदान में,
दोनों हाथ पैर फैलाए,
दोनों हाथ ज़मीन पर
लापरवाही से जमाए,
आसमां की ओर मुंह
किए मगर आंखें मूंदे,
जानता हूं मैं बखूबी,
ऐसा चैन ओ सुकून,
दफ्तरों में, फाइलों में
कभी मयस्सर नहीं,
ऐसी मरमरी धूप,
ऐसी ज़िंदा बयार,
कहां नसीब होती हैं
बंद खिड़कियों और
दरवाजों के भीतर,
और फिर अचानक
चल देता हूं उठकर,
और फिर जाते हैं टूट—
मेरी नींद और ख्वाब,
अलार्म की कर्कश
आवाज़ बता देती है—
सुकूनो चैन बस
ख्वाबों की बात है!
—Vijay Kumar
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