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ज़हन बांधे ख़्वाबों के पुल
पांव अपने जमीं पे रहते,
ज़हन बांधे ख़्वाबों के पुल,
ज़ीस्त की नदी में बेसुध बहते,
पंछी पंख फैलाने को आकुल।

सोच के सागर में डूबे हम,
काम धाम सब होगा कल,
दफ़्तर करता नाक में दम,
मन की दुनिया में घूमें चल।
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