याद तुम्हारी आती है
सूरज होता है क्षितिज पर, पंछी घरों को जाते है।
छा जाता है अंधियारा स्याह, थके हुए सब सोते है।
मै भी दिनभर के अभिनय से, थककर लेट जाता हूं।
अनगिनत बूंदों के बहाव को, रोक नहीं पाता हूं।
स्याह अंधेरे का आश्रय पाकर, अश्रुधारा का बहाव तेज होता है।
वर्षा में नन्ही बूंदों का सहारा पाकर, जैसे क्रोधित नदी का तांडव होता है।
मैं मन को बहलाता हूं, फुसलाता हूं
लाख बहाने कर, हर रोज मनाता हूं।
वो नहीं किस्मत में, तू क्यों रोता है
इस जगत के साथ, तेरा भाग्य भी सोता है।
हा! धिक मुझे मै कायर हूं।
जो इस अन्तर्द्वंद को, ना जीत पाया हूं।
ये मोह का जंजाल है, यह माया कि चाल है ।
भ्रमित, मैं इसका अंत ना पाता हूं।
हम दूर हुए जाते है क्यूं? इसका उचित कारण ना जान पाता हूं।
समाज का बंधन पाश, ना हमे बांध पाया है।
परिवारिक प्रेम ऐसा? कैसा रंग दिखाया है।
प्रेम है तो बंधन क्यों? और बंधन है तो प्रेम कैसा?
परिवार है तो ये दुख क्यों? ये दुख है तो प्रतिकार क्यों ?
ये कैसी दुविधा है, ये कैसा मोहपाश है।
जीवन को निगलता, ये कैसा शाप है।
प्यार का प्रथम, प्रेम का दूसरा और मोहब्बत का तीसरा आखर है अधूरा।
कैसी नियति रची है विधाता तूने, चाहत का हर आखर है पूरा ।
चाहत रखने वाले लोग अब हमे जलाते है।
हम प्रेमी भूलवश उनसे ईर्ष्या बढ़ाते है।
ये कैसी दुविधा बनकर, उभर आईं है मन में
जब हम साथ थे, क्या उसी प्रकार जी पाऊंगा जीवन में
डर है ये अश्रुधारा अमावस का सहारा पाकर, जीवन तबाह ना कर दे।
स्याह अंधेरे में ये प्रलय का रूप ना धर ले।
ये सब होता है क्युकी, ये सूरज ढलता है।
इस संताप से तुम्हारे ही, ये जीवन जलता है।
ये सब होता है क्युकी, ये मन नहीं सोता है।
यादों कि शर श्यया पर, ये "पार्थ" सदा ही रोता है।
ये सब होता है क्युकी, ये आंखे रोती है।
नहीं इनके आगे अब, इनकी जीवन ज्योति है।
ये सब होता है क्युकी तुम्हारी याद आती है।
याद तुम्हारी आती है।
याद तुम्हारी आती है।
© PARTH
छा जाता है अंधियारा स्याह, थके हुए सब सोते है।
मै भी दिनभर के अभिनय से, थककर लेट जाता हूं।
अनगिनत बूंदों के बहाव को, रोक नहीं पाता हूं।
स्याह अंधेरे का आश्रय पाकर, अश्रुधारा का बहाव तेज होता है।
वर्षा में नन्ही बूंदों का सहारा पाकर, जैसे क्रोधित नदी का तांडव होता है।
मैं मन को बहलाता हूं, फुसलाता हूं
लाख बहाने कर, हर रोज मनाता हूं।
वो नहीं किस्मत में, तू क्यों रोता है
इस जगत के साथ, तेरा भाग्य भी सोता है।
हा! धिक मुझे मै कायर हूं।
जो इस अन्तर्द्वंद को, ना जीत पाया हूं।
ये मोह का जंजाल है, यह माया कि चाल है ।
भ्रमित, मैं इसका अंत ना पाता हूं।
हम दूर हुए जाते है क्यूं? इसका उचित कारण ना जान पाता हूं।
समाज का बंधन पाश, ना हमे बांध पाया है।
परिवारिक प्रेम ऐसा? कैसा रंग दिखाया है।
प्रेम है तो बंधन क्यों? और बंधन है तो प्रेम कैसा?
परिवार है तो ये दुख क्यों? ये दुख है तो प्रतिकार क्यों ?
ये कैसी दुविधा है, ये कैसा मोहपाश है।
जीवन को निगलता, ये कैसा शाप है।
प्यार का प्रथम, प्रेम का दूसरा और मोहब्बत का तीसरा आखर है अधूरा।
कैसी नियति रची है विधाता तूने, चाहत का हर आखर है पूरा ।
चाहत रखने वाले लोग अब हमे जलाते है।
हम प्रेमी भूलवश उनसे ईर्ष्या बढ़ाते है।
ये कैसी दुविधा बनकर, उभर आईं है मन में
जब हम साथ थे, क्या उसी प्रकार जी पाऊंगा जीवन में
डर है ये अश्रुधारा अमावस का सहारा पाकर, जीवन तबाह ना कर दे।
स्याह अंधेरे में ये प्रलय का रूप ना धर ले।
ये सब होता है क्युकी, ये सूरज ढलता है।
इस संताप से तुम्हारे ही, ये जीवन जलता है।
ये सब होता है क्युकी, ये मन नहीं सोता है।
यादों कि शर श्यया पर, ये "पार्थ" सदा ही रोता है।
ये सब होता है क्युकी, ये आंखे रोती है।
नहीं इनके आगे अब, इनकी जीवन ज्योति है।
ये सब होता है क्युकी तुम्हारी याद आती है।
याद तुम्हारी आती है।
याद तुम्हारी आती है।
© PARTH
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