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मानव कर माधव का सुमिरन
जब व्यथित हृदय हो व्याकुल चिंतन
चिंता से आहत हो जब मन
संघर्ष से हार गया हो तन
तब भटके मन की पीड़ा का
बस एक सरल सहज साधन
मानव कर माधव का सुमिरन

जग के पदार्थ भरमाते हैं
उर की चाह बढाते हैं
हर क्षण मन को बहकाते है
मिथ्या स्वप्न दिखाते हैं
ये क्षणिक शांति के दायक,उन्मन
मानव कर माधव का सुमिरन

ये जग नाट्य का द्वेध मंच है
प्रेम जगत का इक प्रपंच है
जन मन को साधता स्वप्न प्रवर
अंबर अवनी हिमकर दिनकर
आते नयनों में फिर ओझल
नाते रिश्ते सपने चंचल
अपनों ने...