मैं हार जाऊ ये कभी नहीं हो सकता
मैं हार जाऊ ये कभी ही नहीं सकता मैं घायल हूं, आहत हूं मगर खोफ है मेरी आंखों में, हरा नहीं सकती तू मुझे ऐ जिंदगी। तू मेरे द्रड़ता को लांघे, ऐसी नहीं है शक्ति तेरे वार में, मैं अटल हूं, मैं पराक्रमी हूं, तेरे ही वार से जिंदा भी हूं मैं। शांत भी हूं, सहनशील भी हूं, मगर गरजती भी हूं। सुन के रूह कांप उठेगी तेरी, ऐसी में दहाड़ती भी हूं। तेरे अहान से डर जाऊं, यह संभव ही नहीं है मेरा। लहू की आखरी बूंद तक लडूंगी, यह वचन है मेरा। अगर हारने से डर लगता मुझे तो जीतने की कोशिश ही ना करती मैं। तजुर्बे ने खामोश रहना सिखाया है मुझे, क्योंकि दहाड़ कर अपनी मंजिल तक नहीं पहुंचा जाता। ऐ ज़िन्दगी जिस रास्ते से आई है वहीं से वापिस हो जाना, अगर किसी में हराने कि हिम्मत है तो वो है मेरा खुदा। हमेशा साथ रहा उसी का इसलिए मुझे हराने की सोचना भी मत। ऐ जिंदगी यदि तूने यह सोचा कि तू मुझे हरा पाएगी, मैं सिर्फ यहीं कहूंगी की मुझे हराना मतलब शेरनी के मुंह में हाथ डालना है। डॉ. श्वेता सिंह। 25.9.2020