...

50 views

मिले इश्क तो!🌺
अपना आज कर लिया बेहतर,
फ़िर भी हमको डराता माज़ी है,

मुस्कुराए थे वो हमें देख कर,
लगा, हुई हमारी उम्रदराज़ी है,

जाने क्या हुआ उस रोज़ उसे,
अजब खामोश सी नाराज़गी है,

बस उसके तसव्वुर में नहीं हम,
वैसे तो दुनिया सारी राज़ी है,

भूल गये हम तो हर शय मगर,
यादें उसकी आज तक ताज़ी हैं,

काश, वो बोले 'कुबूल है' कभी,
हमारा तो तैयार बैठा क़ाज़ी है,

मिले इश्क तो आब ए ज़म-ज़म,
न मिले तो जुए की हारी बाज़ी है!
🤗🌺🤗🌺🤗

माज़ी—पूर्व, भूतकाल, Past
तसव्वुर— ख्याल
शय— चीज़
आब ए ज़म-ज़म*—मक्का के समीप
उपलब्ध पवित्र जल
— Vijay Kumar
© Truly Chambyal