...

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ये दर्द हैं मुझ सागरका, इसे छलकने देना.....!!!
जिंदगी दिखता रंगरूप का खजाना ।
चाहे रंगकी रंग–रलियाहो, या रूपकी कलिया हो।
हर चलचित्र में छुपा है पात्र का छलाना।।
कभी हास्य, तो कभी दुखद रूप में,
ये दर्द है उस सागरका, जो चाहता है छलकना,
बस उसे छलकने देना ।।१।।

एक दिन लहराती सागरसे जब पूछा,
रंग तो एक है फिर क्यों स्वाद अलग–अलग ??
उसने बोला, गर्भ में पलता हर जीवका चलचित्र अलग–अलग।
जिससे कभी निकलता अमृतसी मीठे बूंदोंका लहराना,
तो कभी बहता जहरीली बूंदोंका कहराना।
ये दर्द है मुझ सागरका, जो दिखता एक रंगका,
पर अंदर पलते पात्र है अलग–अलग।।
अब मैं किनारे करवटे चाहता हु लेना, बस मुझे लेनेदेना ।।२।।
© 2005 self created by Rajeev Sharma