...

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पता नहीं,
उठाके कलम हर बार रख दिया मैंने
किसी कि बात सुनी फिर फोन रख दिया मैंने
जख्म हरे थे लगाकर दिल से
बगैर कुछ बोले रख दिया मैंने
फिर खुदको छोड़ कर तन्हा
बाकी सब वैसा रख दिया मैंने
रख दिया खुदको किसी जमाने में
फिर जमाने से अलग खुदको रख दिया मैंने
इस रख रखाव के जमाने में
पता नहीं खुदको कहा रख दिया मैंने
सत्यम दुबे
© Satyam Dubey