...

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कुछ पल
एकांत के कुछ पल कभी
जीवन में मेरे भी ऐसा हो
हो घाट बनारस का और
मन में मेरे पावन गंगा हो
ना शोर –शराबा हो कोई और
ना कोई चिल्लम– चिल्ला हो
मौजों संग बहती धारा हो और
कांधे को तेरा सहारा हो

एकांत के कुछ पल कभी
जीवन में मेरे भी ऐसा हो
हो चहु ओर निरवता घनघोर मगर
अंतस में बह रहा निर्मल झरना हो
ना चीख रहा हो अंदर कोई
ना बाहर कोई कोलाहल हो
झरने संग गिरता दर्प मेरा
और अंतर का रंग सुनहरा हो

एकांत के कुछ पल कभी
जीवन में मेरे भी ऐसा हो
हो शिखर कैलाश सा अलौकिक और
भीतर फैली चंद्र किरणों की शीतलता हो
ना जीवन गरल का शोक हो कोई
ना सुधा को मन ललाईत हो
हो समाहित उर में विस्तार व्योम का
तन में धैर्य धरा सा हो

एकांत के कुछ पल कभी
जीवन में मेरे भी ऐसा हो
हो शाम का धुंधलका
वृक्षों पर पक्षियों का बसेरा हो
हो गोधली या की प्रथम लालिमा
क्षितिज में मिलन, गगन–धरा का हो
हो बसा अधरों पर मृदु–मुस्कान
मन में प्रेम तुम्हारा गहरा हो
© Ranjana Shrivastava

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