...

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लम्हें।
दास्तान ऐ जिंदगी -
कभी दृश्य- कभी तमाशे ,
कभी ख़ुशी- कभी ग़म और कहीं सुकून ।
वह जो लफ़्ज़ों में ना व्यया की जाए-
उसकी व्याख्या करतीं लेखांकन।

समय की वो पहलू जो गुजर गए-
क्या वह समय ही गलत था ?
या उस समय में मिले- वो- बीते लम्हे ?
या उन लम्हे में मिलें लोग ?
या था वो तकदीर की कोई सीख थी ?
जो आज पुनः तफ़तीश करने पे मिलें जवाब।

मीठी चाशनी से जो थे पल-
क्या वो सच्चाई थी?
या थी ये सच जो आज नजर आ रही?

कहते हैं- जिंदगी की हर मोड़ ,
आपके चाहने से-या-ना से ना बनते।
क्या यहीं हैं वज़ह ?




© _silent_vocal_