...

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तुम
तुम तुम.. थे तुम ही रहते।
ज़िन्दगी में क्यू आए ।
यूं बहारो के सपने दिखा के
फूलो को नहीं जलाते।

आसमान से दोस्ती करके
तारो को नहीं तोड़ते।
हकिगत के दौर में।
ख्वाबों को नहीं सजाते।

माना नफ्रत है तुम्हे हमसे।
पर येहसान दिखाकर।
खुदको अच्छा और दूसरो
को बुरा नहीं समजते।

यूं रंगों में मिलावट करके
रंग नहीं बदलते।
खुदके सपनो को डोरी में।
दूसरो के सपनो को नफरत में नहीं बुनते।

खुले आसमान में पंछी यो को
कैद नहीं करते।
इजाज़त के बिना आकर
किसी कि ज़िन्दगी से बिना इजाजत के नहीं जाते।।