...

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मैं श्रृंगार हूँ.....
मैं श्रृंगार हूँ तेरी कलम की
तु है शायर मेरा सादगी से भरा...
जो हो बसर लहज़े सोहबत का
तो स्याही से सजे एक नगमा प्यारा..!

मैं श्रृंगार हूँ तेरी हर नज़्म की ,
तु है सनम वफा-ए -यार मेरा
जो कदम से कदम मिलाये चले ये कलम अपनी.....
लिखी जायेगी फिर एक कलाम ए वफायें तेरा..!

मैं श्रृंगार हूँ तेरी हर लफ्ज़ की,
तु है ख़ास , वफ़ा ए शायर मेरा
सजती रहूँ मैं, बसती रहूँ तेरी रंग ए स्याह में...
बन कर काग़ज़ कोरी, करूँ इंतज़ार,
सदा तेरा मैं, ए! मेरे कलम-ए- वफ़ा ए यारा..!

जयश्री✍️