जीवन
लाखों बार गगरियाँ फूटीं, शिक़न नहीं आई पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, चहल-पहल वो ही है तट पर..
तम की उमर बढ़ाने...
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, चहल-पहल वो ही है तट पर..
तम की उमर बढ़ाने...