...

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आरजू
छत पे कभी कभी युँ ही आया करो
गेसुओ को हवाओ मे लहराया करो.....

महताब को छुपाना लाजमी है मगर
हर शब को अमावस ना बनाया करो.....

कुछ तो वजह है होठो के सुर्ख होने की
बे-वजहा कभी कभी तुम मुस्कुराया करो....

फिजाओ से आएगी निकहत इश्क की
गुलाब को गुलिस्तामे तुम खिलाया करो....

युँ तो होती रहती है बारिशे बरसात मे
बे-मौसम भी कभी तुम बरस जाया करो....
© संदीप देशमुख