तुम और मैं।
तुम रश्क की सरगम में
मैं महफ़ूज़ सा तुम में
तुम नक़्शे सी जुड़ी हो
टूटा हूँ मगर मैं
तुम साथ पानियों के
मैं तकियों के समँदर में
तुम परछाई रौशनी की
मैं करवटों के घर में
तुम मंज़िल पे तन्हा
मैं सिसक के सफ़र में
तुम अरब के सागर
मैं खेलती झेलम में
तुम किताब का हिस्सा
तुम मेरी कलम में ...
तुम रश्क़ की सरगम
मैं इश्क़ के धर्म में ...
तुम कहानी में ज़िँदा
हर जगह हूँ ख़त्म मैं
हर जगह हूँ ख़त्म मैं ....
© Vaartik
मैं महफ़ूज़ सा तुम में
तुम नक़्शे सी जुड़ी हो
टूटा हूँ मगर मैं
तुम साथ पानियों के
मैं तकियों के समँदर में
तुम परछाई रौशनी की
मैं करवटों के घर में
तुम मंज़िल पे तन्हा
मैं सिसक के सफ़र में
तुम अरब के सागर
मैं खेलती झेलम में
तुम किताब का हिस्सा
तुम मेरी कलम में ...
तुम रश्क़ की सरगम
मैं इश्क़ के धर्म में ...
तुम कहानी में ज़िँदा
हर जगह हूँ ख़त्म मैं
हर जगह हूँ ख़त्म मैं ....
© Vaartik