...

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चले जाना अच्छा है
अब हँसना मुस्कुराना,नासमझ सा हैं।
अब और आगे बढ़ना,एक कोशिश सा बना।
क्यूँ आज हम मैं का हुआ।
अब जाने, इस साथ के कारन।
हम उसके पास थे। ....पर,
पास हमारे वो साथ नहीं थे।
हुआ मन में कुछ भारी ,
कोस-से हुए सभी सवाल।
हम खो दे खुद हमको,उनके लिए आज भी,
ढूंढते हम इसका जवाब।
क्या यह सही होगा?
अब कुछ छूटा विश्वास।
मन में अब शक तो ,नहीं रख सकते हैं,
शक जख्म की दवा नहीं।
ये सारा झूठ सच बना था।
आँखों में आँसू से धुँधला,हो मौके पर मिला।
यूँ मौके पर बिछडना,हमारे लिये अच्छा हुआ।
© 🍁frame of mìnd🍁