स्त्री कैद/स्वतंत्र.!.??
कितनी सदियां बीत गई,
आदिम से वर्तमान दिन आए,
कुछ नही बदला सम्पूर्ण दौर में जो,
वो है स्वरूप नारी का ।
कल भी वह एक कैद में थी,
आधुनिक होकर भी कैद ही है,
पहले समाजिक बंधन घेरे थे,
मर्यादा ने थी डोरी थामी ।
घर के भीतर तक ही सिमटी थी,
हर घर की एक-एक नारी,
दौर बदला रीति-रिवाज बदले,
नारी के बंधन न टूटे।
बस उसे कैद में करने के,
साधन ही है जो हर क्षण बदले।
पहले पिता भाई और
पति फिर बच्चों में उलझी थी,
अपने सपनों को भूलकर,...